आलोचना:जीवन की कड़वी सच्चाई है
आलोचनाओं की भट्ठी मे तपने मात्र से कुछ हांसिल नहीं होता आलोचनाओं से सीखें कमियों को दूर करें और यही सबसे महत्वपूर्ण है।
आप कुछ करेंगे तब भी आपकी आलोचना होगी और कुछ नहीं करेंगे तब भी आपकी आलोचना होगी । शायद आलोचनाएँ जीवन का एक अहम हिस्सा हैं ।
आलोचनाएँ आपकी सबसे अच्छी शिक्षक है, जीवन मे सभी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने जीवन में आलोचनाओं को किस रूप मे देखते हैं ।
सही आलोचकों की पहचान हमारे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि गलत आलोचकों की बातों को गंभीरता से लेने पर नुकसान हों सकता है !
जो निष्पक्ष नहीं होता वही द्वेषपूर्ण भावना से आपकी आलोचना करता है। वह आपका करीबी भी हों सकता है अथवा प्रतिद्वंदी भी हों सकता है । भले ही आप सौ प्रतिशत सही हों लेकिन ऐसे लोगों की आदत होती है कि किसी ना किसी तरीके से आपको नुकसान पहुंचाया जाया । सीधे शब्दों मे कहें तो ऐसे लोगों मे ईर्ष्या,जलन,द्वेष आदि कि भावना उनके स्वभाव मे ही विद्यमान होती है । वे आपके सही आलोचक नहीं हो सकते ऐसे लोगों कि आलोचनाओं को गंभीरता से लेना उचित नहीं है वो भी तब जब यह सुनिश्चित हों कि आप सही हैं ।
सच्चा आलोचक वही है जो निष्पक्ष हों और वह कोई भी हों सकता है एक निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा की गई आलोचना ही किसी के लिए अहम हों सकती है यह हम पर निर्भर करता है कि हम इन आलोचनाओं को अपने जीवन मे किस प्रकार से देखते हैं ।
अत्यधिक महत्वपूर्ण:
आलोचक हों या समीक्षक अगर वह निष्पक्षता के पैमाने पर फिट बैठता है तभी वह एक अच्छा आलोचक या समीक्षक माना जाता है ।
वैसे तो आपकी आलोचना तभी होती है जब आपमे कोई कमी हों या सुधार की संभावना हों ऐसी दशा मे हमें इन आलोचनाओं से भागने की जरूरत नही है बल्कि जहां तक संभव हों सके सुधार कर कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए । यदि हम ऐसा करेंगे तो सबसे ज्यादा हमको ही इसका लाभ मिलेगा।
आलोचना कड़वी दवा के समान होती है जब कोई किसी बात को लेकर हमारी आलोचना करता है तो हमे बुरा लगता है हमे लगता है कि शायद वह हमारी बुराई कर रहा है यदि उस व्यक्ति के अंदर आपके लिए कोई दुर्भावना नहीं है तो ऐसे व्यक्ति की बातों का बुरा मानने का कोई औचित्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति की बातों को ध्यान मे रखना चाहिए और जहां तक संभव हो सके उन कमियों-खामियों को ही दूर करने का प्रयास करें जिनके कारण आपकी आलोचना हो रही हो।
उदाहरण:
यदि एक पिता द्वारा उसके पुत्र की आलोचना किसी बात को लेकर की जाए जो की सही हो और वह लड़का अपने पिता की बातों का बुरा माने तो ऐसी दशा मे वह लड़का अपना ही नुकसान करेगा ।
ध्यान देने योग्य बात:
कभी-कभी समय बीत जाने के बाद हमें अपनी गलतियों का अहसास होता है और तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होती है, आलोचनाओं के रूप मे हमें संकेत तो मिलता है लेकिन हम उन संकेतों को सही अर्थ मे नहीं समझ पाते। अगर उन आलोचनाओं पर पहले ही ध्यान दे देते तो शायद पछताने की नौबत ना आती ।
Social Plugin